
हैलो बच्चो!
आज हम कक्षा 12वीं की पाठ्यपुस्तक
आरोह भाग-2 की कविता पढ़ेंगे
‘उषा’
Usha Poem Class 12 Hindi Aroh Part 2
बच्चों, कविता के भवार्थ को पढ़ने से पहले कवि के जीवन परिचय को जानते हैं।
उषा कविता का प्रतिपादय एवं सार कक्षा 12
कवि परिचय-शमशेर बहादुर सिंह
जीवन परिचय: नई कविता के समर्थकों में शमशेर बहादुर सिंह की एक अलग छवि है। इनका जन्म 13 जनवरी, सन 1911 को देहरादून में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में ही हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। चित्रकला में इनकी रुचि प्रारंभ से ही थी। इन्होंने सुमित्रानंदन पंत के पत्र ‘रूपाभ’ में कार्य किया। 1977 ई. में ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ काव्य-संग्रह पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इन्हें कबीर सम्मान सहित अनेक पुरस्कार मिले। सन 1993 में अहमदाबाद में इनका देहांत हो गया।
रचनाएँ:
शमशेर बहादुर सिंह ने कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मै, इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी, ‘ऊर्दू- हिंदी कोश’ का संपादन।
काव्यगत विशेषताएँ:
वैचारिक रूप से प्रगतिशील एवं शिल्पगत रूप से प्रयोगधर्मी कवि शमशेर को एक बिंबधर्मी कवि के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अपनी कविताओं में समाज की यथार्थ स्थिति का भी चित्रण किया है। ये समाज में व्याप्त गरीबी का चित्रण करते हैं। कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है। प्रकृति के नजदीक रहने के कारण इनके प्राकृतिक चित्र अत्यंत जीवंत लगते हैं। ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन वातावरण का सजीव चित्रण है।
भाषा-शैली:
शमशेर बहादुर सिंह ने साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कथा और शिल्प-दोनों ही स्तरों पर इनकी कविता का मिजाज अलग है। उर्दू शायरी के प्रभाव से संज्ञा और विशेषण से अधिक बल सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों को दिया है।
कविता का प्रतिपादय एवं सार
प्रतिपाद्य: प्रस्तुत कविता ‘उषा’ में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने सूर्योदय से ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित होने वाली प्रकृति का शब्द-चित्र उकेरा है। कवि ने प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने का अद्भुत प्रयास किया है। कवि भोर की आसमानी गति की धरती के हलचल भरे जीवन से तुलना कर रहा है। इसलिए वह सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है जो गाँव की सुबह से जुड़ता है- वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है और स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ हैं। कवि ने नए बिंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है।
सार: कवि कहता है कि सूर्योदय से पहले आकाश का रंग गहरे नीले रंग का होता है तथा वह सफेद शंख-सा दिखाई देता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है मानो किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप दिया हो। सूर्य के ऊपर उठने पर लाली फैलती है तो ऐसा लगता है जैसे काली सिल को किसी ने धो दिया हो या उस पर लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। नीले आकाश में सूर्य ऐसा लगता है मानो नीले जल में गोरी युवती का शरीर झिलमिला रहा है। सूर्योदय होते ही उषा का यह जादुई प्रभाव समाप्त हो जाता है।
‘उषा’ कविता
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है)
प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। कविता में कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इस अंश में सूर्योदय का मनोहारी वर्णन किया गया है।
व्याख्या: कवि बताता है कि सुबह का आकाश ऐसा लगता है मानो नीला शंख हो। दूसरे शब्दों में, इस समय आसमान शंख के समान गहरा नीला लगता है। वह पवित्र दिखाई देता है। वातावरण में नमी प्रतीत होती है। सुबह-सुबह आकाश ऐसा लगता है मानो राख से लीपा हुआ कोई चौका है। यह चौका नमी के कारण गीला लगता है।
विशेष:
(i) कवि ने प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया है।
(ii) ‘शंख जैसे’ में उपमा अलंकार है।
(iii) सहज व सरल शब्दों का प्रयोग किया है।
(iv) ग्रामीण परिवेश सजीव हो उठता है।
(v) नए उपमानों का प्रयोग है।
2.
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस कविता में कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। कविता के इस अंश में सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया गया है।
व्याख्या: कवि प्रात:कालीन आकाश का वर्णन करते हुए कहता है कि सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो हलकी लालिमा की रोशनी फैल जाती है। ऐसा लगता है कि काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है। अँधेरा काली सिल तथा सूरज की लाली केसर के समान लगती है। इस समय आकाश ऐसा लगता है मानो काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। अँधेरा काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा लाल खड़िया चाक के समान लगती है।
विशेष:
(i) कवि ने प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है।
(ii) पूरे काव्यांश में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(iii) मुक्तक छंद का प्रयोग है।
(iv) नए बिंबों व उपमानों का प्रयोग है।
(v) सरल, सहज खड़ी बोली में सुंदर अभिव्यक्ति है।
3.
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और …….
जादू टूटता हैं इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा हैं।
प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2‘ में संकलित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इसमें सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया गया है।
व्याख्या: कवि ने भोर के पल-पल। बदलते दृश्य का सुंदर वर्णन किया है। वह कहता है कि सूर्योदय के समय आकाश में गहरा नीला रंग छा जाता है। सूर्य की सफेद आभा दिखाई देने लगती है। ऐसा लगता है मानो नीले जल में किसी गोरी सुंदरी की देह हिल रही हो। धीमी हवा व नमी के कारण सूर्य का प्रतिबिंब हिलता-सा प्रतीत होता है।
कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है तो उषा का पल-पल। बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा लगता है कि उषा का जादुई प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
विशेष:
(i) कवि ने उषा का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत किया है।
(ii) माधुर्य गुण है।
(iii) ‘नील जल ’ हिल रही हो।‘ -में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(iv) सरल भाषा का प्रयोग है।
(v) मुक्तक छंद है।
Class 12th Usha chapter mcqs
IMPORTANT MCQs (बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर)
1. ‘उषा’ कविता किस की रचना है ?
(क) निराला
(ख) पंत
(ग) शमशेर बहादुर सिंह
(घ) रघुवीर सहाय।
उत्तर – (ग) शमशेर बहादुर सिंह।
2. ‘उपा’ दिन का कौन-सा समय होता है ?
(क) प्रभात
(ख) मध्याहन
(ग) संध्या
(घ) रात्रि।
उत्तर- (क) प्रभात।
3. प्रात:कालीन नीला आकाश किसके जैसा बताया गया है?
(क) केसर
(ख) सिंदूर
(ग) झील
(घ) शंख।
उत्तर – (घ) शंख।
4. कवि ने राख से लीपा हुआ गीला चौका किसे कहा है ?
(क) भोर के तारे को
(ख) भोर के नभ को
(ग) भोर की वायु को
(घ) भोर की किरण को!
उत्तर – (क) भोर के तारे को।
5. लाल केसर से धुली हुई काली सिल क्या है ?
(क) सूर्य
(ख) आकाश
(ग) चंद्रमा
(घ) तारे।
उत्तर – (ख) आकाश
6. उषा का जादू किसके उदय होने पर अथवा किससे टूटता है ?
(क) चंद्रमा के
(ख) कवि के
(ग) सूर्य के
(घ) भोर के तारे।
उत्तर – (ग) सूर्य के।
7. राख से लीपा हुआ चौका’ किस भाव को व्यक्त करता है?
(क) परंपरा
(ख) पुरातनता
(ग) पवित्रता
(घ) आस्था ।
उत्तर – (ग) पवित्रता।
8. ‘बहुत नीला, राख जैसे’ में अलंकार है ?
(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उपमा।
उत्तर – (घ) उपमा।
9. ‘लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने स्लेट पर’ में ‘स्लेट’ क्या है ?
(क) सूर्य
(ख) तारे
(ग) आकाश
(घ) धरती।
उत्तर – (घ) धरती।
10. ‘नील जल में किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो में कौन-सा भाव है?
(क) सुगंध का
(ख) निर्मलता का
(ग) उज्ज्वलता का
(घ) तरलता का।
उत्तर – (ग) उज्ज्वलता का ।
11. ‘बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुन गई हों में भाव है ?
(क) निर्मलता का
(ख) उज्ज्वलता का
(ग) सहजता का
(घ) सरलता का।
उत्तर- (ग) सहजता का।
12. बहुत काली सिल किस लाल से धुली हुई लगती है ?
(क) गुलाब
(ख) कमल
(ग) केसर
(घ) सिंदूर।
उत्तर – (ग) केसर।
13. नीले आकाश में उदय होता हुआ सूर्य किस जैसा प्रतीत हो रहा है ?
(क) सिंदूर के समान
(ख) शंख जैसा
(ग) गौरवर्णीय सुंदरी जैसा
(घ) झील के समान।
उत्तर – (ग) गौरवर्णीय सुंदरी जैसा।
14. ‘उषा’ कविता में कवि ने ‘उषा’ का कौन-सा चित्र उपस्थित किया है?
(क) छाया चित्र
(ख) तैल चित्र
(ग) शब्द चित्र
(घ) रेखाचित्र।
उत्तर – (ग) शब्द चित्र।
15. प्रातः आकाश का रंग कैसा था ?
(क) नीला
(ख) काला
(ग) सुनहरा
(घ) लाल।
उत्तर – (क) नीला।