Kavitavali Poem Class 12th Summary, Explanation & Question Answers
हैलो बच्चो!
आज हम कक्षा 12वीं की पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 की कविता पढ़ेंगे
‘कवितावली’
कविता के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।
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Kavitavali poem summary
बच्चों, कविता के भवार्थ को पढ़ने से पहले कवि के जीवन परिचय को जानते हैं।
कवि परिचय तुलसीदास
जीवन परिचय– गोस्वामी तुलसीदास का जन्म बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन 1532 में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों मानते हैं। इनका बचपन कष्ट में बीता। बचपन में ही इन्हें माता-पिता का वियोग सहना पड़ा। गुरु नरहरिदास की कृपा से इनको रामभक्ति का मार्ग मिला। इनका विवाह रत्नावली नामक युवती से हुआ। कहते हैं कि रत्नावली की फटकार से ही वे वैरागी बनकर रामभक्ति में लीन हो गए थे। विरक्त होकर ये काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि तीर्थों पर भ्रमण करते रहे। इनका निधन काशी में सन 1623 में हुआ।
रचनाएँ: गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
रामचरितमानस, कवितावली, रामलला नहछु, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, रामाज्ञा-प्रश्न, कृष्ण गीतावली, पार्वती–मंगल, जानकी-मंगल, हनुमान बाहुक, वैराग्य संदीपनी।
इनमें से ‘रामचरितमानस’ एक महाकाव्य है।
‘कवितावली’ में रामकथा कवित्त व सवैया छंदों में रचित है।
‘विनयपत्रिका’ में स्तुति के गेय पद हैं।
काव्यगत विशेषताएँ: गोस्वामी तुलसीदास रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि हैं। ये लोकमंगल की साधना के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह तथ्य न सिर्फ़ उनकी काव्य-संवेदना की दृष्टि से, वरन काव्यभाषा के घटकों की दृष्टि से भी सत्य है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि शास्त्रीय भाषा (संस्कृत) में सर्जन-क्षमता होने के बावजूद इन्होंने लोकभाषा (अवधी व ब्रजभाषा) को साहित्य की रचना का माध्यम बनाया।
भाषा–शैली: गोस्वामी तुलसीदास अपने समय में हिंदी-क्षेत्र में प्रचलित सारे भावात्मक तथा काव्यभाषायी तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें भाव-विचार, काव्यरूप, छंद तथा काव्यभाषा की बहुल समृद्ध मिलती है। ये अवधी तथा ब्रजभाषा की संस्कृति कथाओं में सीताराम और राधाकृष्ण की कथाओं को साधिकार अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं। उपमा अलंकार के क्षेत्र में जो प्रयोग-वैशिष्ट्य कालिदास की पहचान है, वही पहचान सांगरूपक के क्षेत्र में तुलसीदास की है।
कविता का प्रतिपादय एवं सार
कवितावली (उत्तरकांड से)

प्रतिपादय: कविता में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है।
सार: कविता में कवि ने पेट की आग को सबसे बड़ा बताया है। मनुष्य सारे काम इसी आग को बुझाने के उद्देश्य से करते हैं चाहे वह व्यापार, खेती, नौकरी, नाच-गाना, चोरी, गुप्तचरी, सेवा-टहल, गुणगान, शिकार करना या जंगलों में घूमना हो। इस पेट की आग को बुझाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेचने के लिए विवश हो जाते हैं। यह पेट की आग समुद्र की आग से भी बड़ी है। अब केवल रामरूपी घनश्याम ही इस आग को बुझा सकते हैं।
कवितावली
1.
किसबी, किसान–कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरी,
अटत गहन–गन अहन अखेटकी।।
ऊँचे–नीचे करम, धरम–अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा–बेटकी।।
‘तुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आगि पेटकी।।
प्रसंग: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तर कांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कविता में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या: तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में मजदूर, किसान-वर्ग, व्यापारी, भिखारी, नौकर, चंचल नट, चोर, दूत, बाजीगर आदि पेट भरने के लिए अनेक काम करते हैं। कोई पढ़ता है, कोई अनेक तरह की कलाएँ सीखता है, कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई दिन भर गहन जंगल में शिकार की खोज में भटकता है। पेट भरने के लिए लोग छोटे-बड़े कार्य करते हैं तथा धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते। पेट के लिए वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हैं। तुलसीदास कहते हैं कि अब ऐसी आग भगवान राम रूपी बादल से ही बुझ सकती है, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र की आग से भी भयंकर है।
विशेष:
- समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है।
- कवित्त छंद है।
- तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।
- ब्रजभाषा है।
- ‘राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार तथा ‘आगि बड़वागितें..पेट की’ में व्यतिरेक अलंकार है।
- निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
- ‘किसबी, किसान-कुल’, ‘भिखारी, भाट’, ‘चाकर, चपल’, ‘चोर, चार, चेटकी’, ‘गुन, गढ़त’, ‘गहन-गन’, ‘अहन अखेटकी ‘, ‘ बचत बेटा-बेटकी’, ‘ बड़वागितें बड़ी’
- अभिधा शब्द-शक्ति है।
2.
खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद–दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित–दहन देखि तुलसी हहा करी।
प्रसंग: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कविता में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या: तुलसीदास कहते हैं कि अकाल की भयानक स्थिति है। इस समय किसानों की खेती नष्ट हो गई है। उन्हें खेती से कुछ नहीं मिल पा रहा है। कोई भीख माँगकर निर्वाह करना चाहे तो भीख भी नहीं मिलती। कोई बलि (दान-दक्षिणा) का भोजन भी नहीं देता। व्यापारी को व्यापार का साधन नहीं मिलता। नौकर को नौकरी नहीं मिलती। इस प्रकार चारों तरफ बेरोजगारी है। आजीविका के साधन न रहने से लोग दुखी हैं तथा चिंता में डूबे हैं। वे एक-दूसरे से पूछते हैं-कहाँ जाएँ? क्या करें? वेदों-पुराणों में ऐसा कहा गया है और लोक में ऐसा देखा गया है कि जब-जब भी संकट उपस्थित हुआ, तब-तब राम ने सब पर कृपा की है। हे दीनबंधु! इस समय दरिद्रतारूपी रावण ने समूचे संसार को त्रस्त कर रखा है अर्थात सभी गरीबी से पीड़ित हैं। आप तो पापों का नाश करने वाले हो। चारों तरफ हाय-हाय मची हुई है।
विशेष:
- तत्कालीन समाज की बेरोजगारी व अकाल की भयावह स्थिति का चित्रण है।
- तुलसी की रामभक्ति प्रकट हुई है।
- ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।
- ‘दारिद-दसानन’ व ‘दुरित दहन’ में रूपक अलंकार है।
- कवित्त छंद है।
- तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
- निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है ‘किसान को’, ‘सीद्यमान सोच’, ‘एक एकन’, ‘का करी’, ‘साँकरे सबैं’, ‘राम-रावरें’, ‘कृपा करी’, ‘दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु’, ‘दुरित-दहन देखि’।
3.
धूत कहौं, अवधूत कहौं, रजपूतु कहौं, जोलहा कहौं कोऊ।
काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।|
तुलसी सरनाम गुलामु हैं राम को, जाको रुचे सो कहैं कछु ओऊ।
माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ।।
प्रसंग: प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कविता में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या: कवि समाज में व्याप्त जातिवाद और धर्म का खंडन करते हुए कहता है कि वह श्रीराम का भक्त है। कवि आगे कहता है कि समाज हमें चाहे धूर्त कहे या पाखंडी, संन्यासी कहे या राजपूत अथवा जुलाहा कहे, मुझे इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे अपनी जाति या नाम की कोई चिंता नहीं है क्योंकि मुझे किसी के बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करना और न ही किसी की जाति बिगाड़ने का शौक है। तुलसीदास का कहना है कि मैं राम का गुलाम हूँ, उसमें पूर्णत: समर्पित हूँ, अत: जिसे मेरे बारे में जो अच्छा लगे, वह कह सकता है। मैं माँगकर खा सकता हूँ, मस्जिद में सो सकता हूँ तथा मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। संक्षेप में कवि का समाज से कोई संबंध नहीं है। वह राम का समर्पित भक्त है।
विशेष:
- कवि समाज के आक्षेपों से दुखी है। उसने अपनी रामभक्ति को स्पष्ट किया है।
- दास्यभक्ति का भाव चित्रित है।
- ‘लैबोको एकु न दैबको दोऊ’ मुहावरे का सशक्त प्रयोग है।
- सवैया छंद है।
- ब्रजभाषा है।
- मस्जिद में सोने की बात करके कवि ने उदारता और समरसता का परिचय दिया है।
- निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है- ‘कहौ कोऊ’, ‘काहू की’, ‘कहै कछु’।
Kavitavali Poem Question Answers
कवितावली प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवितावली में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
अथवा
‘कवितावली’ के आधार पर पुष्टि कीजिए कि तुलसी को अपने समय की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जानकारी थी।
उत्तर: ‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के अध्ययन से पता चलता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। वे समाज के विभिन्न वगों का वर्णन करते हैं जो कई तरह के कार्य करके अपना निर्वाह करते हैं। तुलसी दास तो यहाँ तक बताते हैं कि पेट भरने के लिए लोग गलत-सही सभी कार्य करते हैं। उनके समय में भयंकर गरीबी व बेरोजगारी थी। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच देते थे। बेरोजगारी इतनी अधिक थी कि लोगों को भीख तक नहीं मिलती थी। दरिद्रता रूपी रावण ने हर तरफ हाहाकार मचा रखा था।
प्रश्न 2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है- तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तुर्क संगत उत्तर दीजिए।
उत्तर: जब पेट में आग जलती है तो उसे बुझाने के लिए व्यक्ति हर तरह का उलटा अथवा बुरा कार्य करता है, किंतु यदि वह ईश्वर का नाम जप ले तो उसकी अग्नि का शमन हो सकता है क्योंकि ईश्वर की कृपा से वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है। तुलसी का यह काव्य सत्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। ईश्वर भक्ति का मेघ ही मनुष्य को अनुचित कार्य करने से रोकने की क्षमता रखता है।
प्रश्न 3. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी? धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ/काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ। इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आती?
उत्तर: तुलसीदास के युग में जाति संबंधी नियम अत्यधिक कठोर हो गए थे। तुलसी के संबंध में भी समाज ने उनके कुल व जाति पर प्रश्नचिहन लगाए थे। कवि भक्त था तथा उसे सांसारिक संबंधों में कोई रुचि नहीं थी। वह कहता है कि उसे अपने बेटे का विवाह किसी की बेटी से नहीं करना। इससे किसी की जाति खराब नहीं होगी क्योंकि लड़की वाला अपनी जाति के वर ढूँढ़ता है। पुरुष-प्रधान समाज में लड़की की जाति विवाह के बाद बदल जाती है। तुलसी इस सवैये में अगर अपनी बेटी की शादी की बात करते तो संदर्भ में बहुत अंतर आ जाता। इससे तुलसी के परिवार की जाति खराब हो जाती। दूसरे, समाज में लड़की का विवाह न करना गलत समझा जाता है। तीसरे, तुलसी बिना जाँच के अपनी लड़की की शादी करते तो समाज में जाति-प्रथा पर कठोर आघात होता। इससे सामाजिक संघर्ष भी बढ़ सकता था।
प्रश्न 4. धूत कहौ… वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर: तुलसीदास का जीवन सदा अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने अपने स्वाभिमान को जगाए रखा। इसी प्रकार के भाव उनकी भक्ति में भी आए हैं। वे राम के सामने गिड़गिड़ाते नहीं बल्कि जो कुछ उनसे प्राप्त करना चाहते हैं वह भक्त के अधिकार की दृष्टि से प्राप्त करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी स्वाभिमानी भक्ति का परिचय देते हुए राम से यही कहा है कि मुझ पर कृपा करो तो भक्त समझकर न कि कोई याचक या भिखारी समझकर।।
प्रश्न 5. व्याख्या करें
(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥
(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
(ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु ने दैबको दोऊ॥
(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी॥
उत्तर:
(क) लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता का त्याग कर दिया और वनवास स्वीकार किया। तुमने वन में रहते हुए सर्दी, धूप, आँधी आदि सहन किया। यदि मुझे पहले ज्ञात होता कि वन में मैं अपने भाई से बिछड़ जाऊँगा तो मैं पिता की बात नहीं मानता और न ही तुम्हें अपने साथ लेकर वन आता। राम लक्ष्मण की नि:स्वार्थ सेवा को याद कर रहे हैं।
(ख) मूर्चिछत लक्ष्मण को गोद में लेकर राम विलाप कर रहे हैं कि तुम्हारे बिना मेरी दशा ऐसी हो गई है जैसे पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की और सँड़ के बिना हाथी की स्थिति दयनीय हो जाती है। ऐसी स्थिति में मैं अक्षम व असहाय हो गया हूँ। यदि भाग्य ने तुम्हारे बिना मुझे जीवित रखा तो मेरा जीवन इसी तरह शक्तिहीन रहेगा। दूसरे शब्दों में, मेरे तेज व पराक्रम के पीछे तुम्हारी ही शक्ति कार्य करती रही है।
(ग) तुलसीदास ने समाज से अपनी तटस्थता की बात कही है। वे कहते हैं कि समाज की बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं हैं वे मात्र राम के सेवक हैं। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं तथा मस्जिद में सोते हैं। उन्हें संसार से कोई लेना-देना नहीं है।
(घ) तुलसीदास ने अपने समय की आर्थिक दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है। इस समय लोग छोटे-बड़े, गलतसही सभी प्रकार के कार्य कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भूख मिटानी है। वे कर्म की प्रवृत्ति व तरीके की परवाह नहीं करते। पेट की आग को शांत करने के लिए वे अपने बेटा-बेटी अर्थात संतानों को भी बेचने के लिए विवश हैं अर्थात पेट भरने के लिए व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है।
प्रश्न 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर: जब लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा तो राम एकदम विह्वल हो उठे। वे ऐसे रोए जैसे कोई बालक पिता से बिछुड़कर होता है। सारी मानवीय संवेदनाएँ उन्होंने प्रकट कर दीं। जिस प्रकार मानव-मानव के लिए रोता है ठीक वैसा ही राम ने किया। राम के ऐसे रूप को देखकर यही कहा जा सकता है कि राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। मानव में अपेक्षित सारी अनुभूतियाँ इस शोक सभा में दिखाई देती हैं।
प्रश्न 7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है?
उत्तर: हनुमान लक्ष्मण के इलाज के लिए संजीवनी बूटी लाने हिमालय पर्वत गए थे। उन्हें आने में देर हो रही थी। इधर राम बहुत व्याकुल हो रहे थे। उनके विलाप से वानर सेना में शोक की लहर थी। चारों तरफ शोक का माहौल था। इसी बीच हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आ गए। सुषेण वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी से दवा तैयार कर के लक्ष्मण को पिलाई तथा लक्ष्मण ठीक हो गए। लक्ष्मण के उठने से राम का शोक समाप्त हो गया और सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। लक्ष्मण स्वयं उत्साही वीर थे। उनके आ जाने से सेना का खोया पराक्रम प्रगाढ़ होकर वापस आ गया। इस तरह हनुमान द्वारा पर्वत उठाकर लाने से शोक-ग्रस्त माहौल में वीर रस का आविर्भाव हो गया था।
प्रश्न 8. कालिदास के रघुवंश महाकाव्य में पत्नी (इंदुमती) के मृत्यु-शोक पर ‘अज’ तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
उत्तर: ‘सरोज-स्मृति’ में कवि निराला ने अपनी पुत्री की मृत्यु पर उद्गार व्यक्त किए थे। ये एक असहाय पिता के उद्गार थे जो अपनी पुत्री की आकस्मिक मृत्यु के कारण उपजे थे। भ्रातृशोक में डूबे राम का विलाप निराला की तुलना में कम है। लक्ष्मण अभी सिर्फ़ मूर्चिछत ही हुए थे। उनके जीवित होने की आशा बची हुई थी। दूसरे, सरोज की मृत्यु के लिए निराला की कमजोर आर्थिक दशा जिम्मेदार थी। वे उसकी देखभाल नहीं कर पाए थे, जबकि राम के साथ ऐसी समस्या नहीं थी।
प्रश्न 9. ‘पेट ही को पचत, बेचते बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
उत्तर: भुखमरी की स्थिति बहुत दयनीय होती है। व्यक्ति भुखमरी की इस दयनीय स्थिति में हर प्रकार का नीच कार्य करता है। कर्ज लेता है, बेटा-बेटी तक को बेच देता है। जब कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है तो आत्महत्या तक कर लेता है। तुलसी का समाज भी लगभग वैसा ही था जैसा कि आज का भारतीय मध्यवर्गीय समाज। उस समय की परिस्थिति भी बहुत भयानक थी। लोगों के पास कमाने का कोई साधन न था ऊपर से अकाल ने लोगों को भुखमरी के किनारे तक पहुँचा दिया। इस स्थिति से तंग आकर व्यक्ति वे सभी अनैतिक कार्य करने लगे। बेटा-बेटी का सौदा करने लगे। यदि साहूकार का ऋण नहीं उतरता है तो स्वयं मर जाते थे। ठीक यही परिस्थिति हमारे समाज की है। किसान कर्ज न चुकाने की स्थिति में आत्महत्याएँ कर रहे हैं। कह सकते हैं कि तुलसी का युग और आज का युग एक ही है। आर्थिक दृष्टि से दोनों युगों में विषमताएँ रहीं।
प्रश्न 10. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई॥
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है?
उत्तर: इस वचन में नारी के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण दिखाई देता है। राम ने अपनी पत्नी के खो जाने से बढ़कर लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने को महत्त्व दिया है। उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि नारी के लिए मैंने भाई खो दिया है यह सबसे बड़ा कलंक है। यदि नारी खो जाए तो उसके खो जाने से कोई बड़ी हानि नहीं होती। नारी से बढ़कर तो भाई-बंधु हैं जिनके कारण व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाता है, यदि वही खो जाए तो माथे पर जीवनभर के लिए कलंक लग जाता है।