Kis Tarah Aakhirkar Main Hindi Mein Aaya Class 9th Summary, Explanation and Question Answers
हैलो बच्चों!
आज हम कक्षा 9वीं की पाठ्यपुस्तक
कृतिका भाग-1 का पाठ पढ़ेंगे
‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’
पाठ के लेखक शमशेर बहादुर सिंह हैं।
बच्चों, पाठ के सार को समझने से पहले लेखक के जीवन परिचय को जानते हैं।

लेखक जीवन परिचयः शमशेर बहादुर सिंह
सन् (1911 – 1993)

लेखक परिचयः स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता के प्रमुख कवि शमशेर बहादुर सिंह का जन्म देहरादून (उत्तराखंड) में हुआ और उनकी शिक्षा देहरादून एवं इलाहबाद विश्वविद्यालय से हुई। अनूठे काव्य-बिम्बों का सृजन करने वाले शमशेर केवल असाधारण कवि ही नहीं, एक अनूठे गद्य-लेखक भी है। ‘दोआब’, ‘प्लाट का मोर्चा’, जैसी गद्य रचनाओं के माध्यम से उनके विशिष्ट गद्यकार के रूप को पहचाना जा सकता है।
प्रमुख कृतियांः कुछ कविताएं, कुछ और कवितएं, चूका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने, काल तुझसे होड़ है मेरी (काव्य संग्रह)य कुछ गद्य रचनाएँ, कुछ और गद्य रचनाएँ (गद्य-संग्रह)।
पाठ का सारः किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया
प्रस्तुत लेख ‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ हिंदी के प्रसिद्ध् लेखक शमशेर बहादुर सिंह द्वारा लिखा गया है। इस लेख में लेखक ने बताया है कि पहले उन्होंने उर्दू और अंग्रेजी में लिखना शुरू किया था, किंतु बाद में अंग्रेजी-उर्दू को छोड़कर हिंदी में लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने यह भी वर्णन किया कि उन्हें अपने जीवन में क्या-क्या कष्ट झेलने पड़े। इसके साथ ही लेखक ने श्री सुमित्रानंदन पंत, डॉ. हरिवंशराय बच्चन तथा श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के प्रति अपनी श्रद्धा को भी व्यक्त किया है।
लेखक कहते हैं कि वे जिस स्थिति में थे, उसी स्थिति में बस पकड़कर दिल्ली चले आए। दिल्ली आकर वे पेंटिंग सीखने की इच्छा से उकील आर्ट स्कूल पहुँचे। परीक्षा में पास होने के कारण उन्हें बिना फीस के ही वहाँ भर्ती कर लिया गया। वे करोल बाग में रहकर कनाट प्लेस पेंटिंग सीखने जाने लगे।
रास्ते में आते-जाते वे कभी कविता लिखते और कभी ड्राइंग बनाते थे और अपनी ड्राइंग के तत्व खोजने के लिए वे प्रत्येक आदमी का चेहरा गौर से देखते थे। पैसे की बड़ी तंगी रहती थी। कभी-कभी उनके बड़े भाई तेज बहादुर उनके लिए कुछ रुपये भेज देते थे। वे कुछ साइनबोर्ड पर लिखकर कमा लेते थे। अतः अपनी टीस को व्यक्त करने के लिए वे कविताएँ और उर्दू में गजल के कुछ शेर भी लिखते थे। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा था कि उनकी कविताएँ कभी छपेंगी।
उनकी पत्नी टी0बी0 (T.B.) की मरीज थीं और उनका देहांत हो चुका था। अतः वे बहुत दुःखी रहते थे। इस समय महाराष्ट्र के एक पत्रकार उनके साथ रहने लगे। इसी समय एक बार क्लास खत्म होने तथा उनके चले जाने के बाद बच्चन जी स्टूडियो में आए थे और लेखक के न मिलने पर वे लेखक के लिए एक नोट छोड़ गए थे। इसके बाद लेखक ने एक अंग्रेजी का सॉनेट लिखा, किंतु बच्चन जी के पास भेजा नहीं। कुछ समय बाद लेखक देहरादून में केमिस्ट की दुकान पर कंपाउंडरी सीखने लगे। वे दुखी और उदास रहते थे। ऐसे में वह लिखा हुआ सॉनेट उन्होंने बच्चन जी को भेज दिया।

देहरादून आने पर बच्चन जी डिस्पेंसरी में आकर उनसे मिले थे। उस दिन मौसम बहुत खराब था और आँधी आ जाने के कारण वे एक गिरते हुए पेड़ के नीचे आते-आते बच गए थे। वे बताते हैं कि बच्चन जी की पत्नी का देहांत हो चुका था। अतः वे भी बहुत दुखी थे। उनकी पत्नी सुख-दुख की युवा संगिनी थीं। वे बात की धनी, विशाल हृदय और निश्चय की पक्की थीं। लेखक बीमार रहने लगे थे, अतः बच्चन जी ने उन्हें इलाहाबाद आकर पढ़ने की सलाह दी और वे उनकी बात मानकर इलाहाबाद आ गए। बच्चन जी ने उन्हें एम0ए0 (M.A.) में प्रवेश दिला दिया क्योंकि वे चाहते थे कि लेखक काम का आदमी बन जाए क्योंकि स्वयं बच्चन जी ने अंग्रेजी में एम0ए0 (M.A.) फाइनल करने के बाद 10-12 साल तक नौकरी की थी, परंतु लेखक सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते थे।
वे बताते हैं कि उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदू बोर्डिंग हाउस के कॉमन रूम में एक सीट नि:शुल्क मिल गई। इसके साथ ही पंत जी की कृपा से उन्हें इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम भी मिल गया। अब उन्हें लगा कि गंभीरता से हिंदी में कविता लिखनी चाहिए, परंतु घर में उर्दू का वातावरण था तथा हिंदी में लिखने का अभ्यास छूट चुका था। अतः बच्चन जी उनके हिंदी के पुनर्संस्कार के कारण बने। इस समय तक उनकी कुछ रचनाएँ ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ में छप चुकी थीं। ‘अभ्युदय’ में छपा लेखक का एक ‘सॉनेट’ बच्चन जी को बहुत पसंद आया था। वे बताते हैं कि पंत जी और निराला जी ने उन्हें हिंदी की ओर खींचा। बच्चन जी हिंदी में लेखन-कार्य शुरू कर चुके थे। अतः लेखक को लगा कि अब उन्हें भी हिंदी-लेखन में उतरने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। बच्चन जी ने उन्हें एक स्टैंजा का प्रकार बताया था। इसके बाद उन्होंने एक कविता लिख डाली। उन्हें बच्चन की ‘निशा-निमंत्राण’ वे आकार ने बहुत आकृष्ट किया। लेखक पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहे थे। इसलिए बच्चन जी को बहुत दुख था। वे बच्चन जी के साथ एक बार गोरखपुर कवि-सम्मेलन में भी गए थे।
अब लेखक की हिंदी में कविता लिखने की कोशिश सार्थक हो रही थी। ‘सरस्वती’ में छपी उनकी कविता ने निराला का ध्यान खींचा। लेखक ‘रूपाभ’ कार्यालय में प्रशिक्षण लेने के बाद बनारस के ‘हंस’ कार्यालय की ‘कहानी’ में चले गए।
वे कहते हैं कि निश्चित रूप से बच्चन जी ही उन्हें हिंदी में ले आए। वैसे बाद में बच्चन जी से दूर ही रहे, क्योंकि उन्हें चिट्ठी-पत्री तथा मिलने-जुलने में उतना विश्वास नहीं था। वैसे बच्चन जी उनके बहुत निकट रहे
Kis Tarah Aakhirkar Main Hindi Mein Aaya Class 9 Question Answers
किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. वह ऐसी कौन सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया?
उत्तर: लेखक जिन दिनों बेरोजगार थे उन दिनों शायद किसी ने उन्हें कटु बातें की होगी जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर पाए होंगे और दिल्ली चले आए होंगे।
प्रश्न 2. लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने का अफसोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर: लेखक को अंग्रेजी में कविता लिखने का अफसोस इसलिए रहा होगा क्योंकि वह भारत के जनता की भाषा नहीं थी। इसलिए भारत के लोग यानी उनके अपने लोग उस भाषा को समझ नहीं पाते होंगे।
प्रश्न 3. अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए नोट में क्या लिखा होगा?
उत्तर: दिल्ली के उकील आर्ट स्कूल में बच्चनजी ने लेखक के लिए एक नोट छोड़कर गए थे। उस नोट में शायद उन्होंने लिखा होगा कि तुम इलाहाबाद आ जाओ। लेखन में ही तुम्हारा भविष्य निहित है। संघर्ष करने वाले व्यक्ति ही जीवन पथ पर अग्रसर होते हैं अतःपरिश्रम से सफलता अवश्य तुम्हारे कदम चूमेगी।
प्रश्न 4. लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किनदृकिन रूपों को उभारा है?
उत्तर: लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व को अनेक रूपों में उभारा है-
- बच्चन का स्वभाव बहुत ही संघर्षशील, परोपकारी और फौलादी संकल्प वाला था।
- बच्चनजी समय के पाबन्द होने के साथदृसाथ कलादृप्रतिभा के पारखी थे। उन्होंने लेखक द्वारा लिखे गए एक ही सॉनेट को पढ़कर उनकी कलादृ प्रतिभा को पहचान लिया था।
- बच्चनजी अत्यंत ही कोमल एवं सहृदय के मनुष्य थे।
- वे हृदय से ही नहीं, कर्म से भी परम सहयोगी थे। उन्होंने न केवल लेखक को इलाहाबाद बुलाया बल्कि लेखक की पढ़ाई का सारा जिम्मा भी अपने ऊपर उठा लिया।
प्रश्न 5. बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला?
उत्तर: बच्चन के अतिरिक्त लेखक को निम्नलिखित लोगों का सहयोग प्राप्त हुआ-
- तेजबहादुर सिंह लेखक के बड़े भाई थे। ये आर्थिक तंगी के समय में उन्हें कुछ रुपये भेजकर उनका सहयोग किया करते थे।
- कवि नरेंद्र शर्मा लेखक के मित्र थे। एक दिन वे लेखक से मिलने के लिए बच्चन जी के स्टूडियो में आये। छुट्टी होने कारण वे लेखक से नहीं मिल सके। तब वे उनके नाम पर एक बहुत अच्छा और प्रेरक नोट छोड़ गए। इस नोट ने लेखक को बहुत सी प्रेरणा दी।
- शारदाचरण उकील कला शिक्षक थे। इनसे लेखक ने पेंटिंग की शिक्षा प्राप्त की।
- हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम दिला दिया। उन्होंने लेखक द्वारा लिखी कविताओं में कुछ संशोधन भी किया।
- लेखक को देहरादून में केमिस्ट की दुकान पर कंपाउंडरी सिखाने में उसकी ससुराल वालों ने मदद की।
प्रश्न 6. लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिये।
उत्तर: हरिवंशराय बच्चन जी के बुलावे पर लेखक इलाहाबाद आ गया। यहीं उन्होंने हिंदी कविता लिखने का गंभीरता से मन बनाया। इसी समय उनकी कुछ कविताएँ ‘सरस्वती’ और ‘चाँद’ पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी थीं। उन्होंने बच्चन जी की ‘निशा निमंत्रण’ के रूप प्रकार पर भी लिखने का प्रयास किया, पर ऐसा लिखना उन्हें कठिन जान पड़ा। उनकी एक कविता को पंत जी ने संशोधित किया। सरस्वती पत्रिका में छपी एक कविता ने निराला का ध्यान खींचा। इसके बाद लेखक ने हिंदी लेखन में नियमित रूप से कदम बढ़ा दिया।
प्रश्न 7. लेखक ने अपने जीवन में जिन कठिनाइयों को झेला है, उनके बारे में लिखिए।
उत्तर: लेखक ने अपने जीवन में प्रारम्भ से ही अनेक कठिनाइयों को झेला है। वह किसी के व्यंग्यदृबाण का शिकार होकर केवल पाँच-सात रुपए लेकर ही दिल्ली चले गए। वह बिना किसी फीस के पेंटिंग के उकील स्कूल में भर्ती हो गए। वहाँ उन्हें साइन-बोर्ड पेंट करके गुजारा चलाना पड़ा। लेखक की पत्नी का टी.बी. के कारण देहांत हो गया था और वे युवावस्था में ही विधुर हो गए थे। इसलिए उन्हें पत्नी-वियोग का पीड़ा भी झेलना पड़ा था। बाद में एक घटना-चक्र में लेखक अपनी ससुराल देहरादून आ गया। वहाँ वह एक दूकान पर कम्पाउंडरी सिखने लगे थे। वह बच्चन जी के आग्रह पर इलाहाबाद चले गए। वहाँ बच्चन जी के पिता उनके लोकल गार्जियन बने। बच्चन जी ने ही उनकी एम.ए. की पढ़ाई का खर्चा उठाया। बाद में उन्होंने इंडियन प्रेस में अनुवाद का भी काम किया। उन्हें हिन्दू बोर्डिंग हाउस के कामनदृरूम में एक सीट फ्री मिल गयी थी। तब भी वह आर्थिक संघर्ष से जूझ रहे थे।
Text और Video के माध्यम से पढ़ाया गया पाठ ‘किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया’ आपको कैसा लगा? हमें कमेंट करके अवश्य बताएं।
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धन्यवाद!